Heart Touching.....
1) वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िन्दगी वही मरहले..मगर अपने-अपने मुक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
2) सूरज का सफ़र ख़त्म हुआ रात न आयी...हिस्से में मेरे ख्वाबों की सौगत न आयी
3) जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज..बट न जाये तेरा बीमार मसीहाओं में..
4) कटेगा देखिए दिन जाने किस अज़ाब के साथ...कि आज धूप नहीं निकली आफ़ताब के साथ
5) ऐ दर्द पता कुछ तू ही बता अब तक ये मोअम्मा हल न हुआ..हम मैं है दिल-ए-बेताब निहां या आप दिल-ए-बेताब
हैं हम
6) कब मिली थी कहाँ बिछड़ी थी हमें याद नहीं..ज़िन्दगी तुझ को तो बस ख़्वाब में देखा हम ने
7) आवारा हैं गलियों में मैं और मेरी तन्हाई...जाएँ तो कहाँ जाएँ हर मोड़ पे रुस्वाई..
8) मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूँ ऐतराफ़..अपने बदन की क़ब्र में कब से गड़ा हूँ मैं
9) वो ख़ुदा है किसी टूटे हुए दिल में होगा..मस्जिदों में उसे ढूँढो न कलीसाओं में
10)बढ़ा के प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया...वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह
11)खुद-ब-खुद छोड़ गए हैं तो चलो ठीक हुआ...इतने अहबाब कहाँ हम से संभाले जाते.....
हम भी ग़ालिब की तरह कूचा-ए-जाना से 'फहीद' .......न निकलते तो किसी रोज़ निकाले जाते
12)बुलन्दियाँ मुझे ख़ुद ही तलाश कर लेंगी...अता तो कीजिए मौक़ा नज़र में आने का
13)नगरी नगरी लाखों द्वारे हर द्वारे पर लाख सुखी,लेकिन जब हम भूल चुके हैं दामन का फैलाना हो
14)कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है ..यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है
15)कभी कभी वो इतनी सलाई देता है.. वो सोचता है तो सुनाई देता है....
16)अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे..मर गये पर न लगा जी तो किधर जायेंगे।
17)दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है..आख़िर इस दर्द की दवा क्या है?
18)गज़ब किया तेरे वादे पे एतबार किया.. तमाम रात हमने क़यामत का इन्ताजार किया...
19)कोशिश जब तेरी हद से गुज़र जायेगी...मंजिल ख़ुद ब ख़ुद तेरे पास चली आएगी
20)जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा.. कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है..
21)तेरे आने का धोखा सा रहा है..दिया सा रातभर जलता रहा है..
22)कट गई आज फिर यों ही तमाम रात ,कुछ तुम्हारी याद में..कुछ तुम्हें भुलाने में !
23)जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है...मेरी तरह से अकेला दिखाई देता है...
न इतना तेज़ चले सर-फिरी हवा से कहो...शजर पे एक ही पत्ता दिखाई देता है..
वो अलविदा का मंज़र वो भीगती पलकें...पस-ए-ग़ुबार भी क्या क्या दिखाई देता है..
ये किस मक़ाम पे लाई है जुस्तजू तेरी...जहाँ से अर्श भी नीचा दिखाई देता है
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